समंदर में समाने जा रही है
नदी ख़ुद को मिटाने जा रही है
बिलखते छोड़कर दोनों किनारे
किसे अपना बनाने जा रही है
बगल में डालकर थैला ये बच्ची
नहीं पढ़ने, कमाने जा रही है
नहीं पढ़ने, कमाने जा रही है
लहू में तर-ब-तर फिर एक सरहद
जहाँ से गिड़गिड़ाने जा रही है
जहाँ से गिड़गिड़ाने जा रही है
तुम्हारी याद दिल को हैक करके
मुझे फिर से सताने जा रही है
मुझे फिर से सताने जा रही है
मेरी उम्मीद बंजर हौसलों पर
नये सपने उगाने जा रही है
नये सपने उगाने जा रही है
परेशां आदमी से ज़ात मेरी
ख़ुदा को कुछ सुनाने जा रही है
ख़ुदा को कुछ सुनाने जा रही है
यहाँ अनमोल इतना शोर सुनकर
ख़मोशी बड़बड़ाने जा रही है
ख़मोशी बड़बड़ाने जा रही है
- के. पी. अनमोल
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