कितने दिनों तक आईना हैरान रहा
अब तक कैसे छिपकर यह इंसान रहा
जब तक कुछ अच्छा करने की नीयत थी
दिल पर मेरे हावी इक शैतान रहा
फ़ाक़ा करते देख धरा के बेटे को
भीतर-भीतर घुटता इक खलिहान रहा
जब भी तोड़ा, कुछ-कुछ रक्खा साबुत भी
मेरे रब का मुझ पर यह एहसान रहा
शंकर पर जब दु:ख का परबत टूटा तो
साया बनकर साथ खड़ा रहमान रहा
सबने मिलकर सींचा है इस धरती को
ऐसे ही तो ज़िन्दा हिंदुस्तान रहा
तुझमें शामिल होकर पहुँचा हूँ ख़ुद तक
रस्ता यह अनमोल कहाँ आसान रहा
- के. पी. अनमोल
अब तक कैसे छिपकर यह इंसान रहा
जब तक कुछ अच्छा करने की नीयत थी
दिल पर मेरे हावी इक शैतान रहा
फ़ाक़ा करते देख धरा के बेटे को
भीतर-भीतर घुटता इक खलिहान रहा
जब भी तोड़ा, कुछ-कुछ रक्खा साबुत भी
मेरे रब का मुझ पर यह एहसान रहा
शंकर पर जब दु:ख का परबत टूटा तो
साया बनकर साथ खड़ा रहमान रहा
सबने मिलकर सींचा है इस धरती को
ऐसे ही तो ज़िन्दा हिंदुस्तान रहा
तुझमें शामिल होकर पहुँचा हूँ ख़ुद तक
रस्ता यह अनमोल कहाँ आसान रहा
- के. पी. अनमोल
बेहतरीन ग़ज़ल है अनमोल साहब, वैसे तो हमेशा से ही आपकी ग़ज़लों का कायल रहा हूँ,सबने मिलकर सींचा है इस धरती को
ReplyDeleteऐसे थोड़े ज़िंदा हिंदुस्तान रहा...... यह शे'र आज के हालात को देखते हुए बेहतरीन हुआ है
आप जैसा उम्दा ग़ज़लकार के अगर ऐसे शब्द हों, तो दिन बन जाने वाली बात होती है :-)
Deleteबहुत शुक्रगुज़ार हूँ आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए शकूर साहब
वाआआह सर
ReplyDeleteबहुत प्यारी ग़ज़ल
ग्रेट
🙏
बहुत शुक्रिया भाई....स्वागत
Deleteशंकर पे जब दु:ख का परबत टूटा तो
ReplyDeleteसाया बनकर साथ खड़ा रहमान रहा
वाह क्या बात है अनमोल जी,,,,,लूट लिया आपने,,,बहुत ही उम्दा ग़ज़ल,,,आनंद आ गया पढ़कर....बधाई...������
बहुत शुक्रिया मनोज जी
Deleteकोई इतनी सादगी से ग़ज़ल कह दे तो बड़ा ताज्जुब होता है ......बहुत ही शानदार मतले से शुरुआत करते हुए इतने बढ़िया बढ़िया शेर कहें हैं वाकई में लाजवाब है.......सबने मिलकर सींचा है इस धरती को,ऐसे थोड़े ज़िंदा हिंदुस्तान रहा....क्या कहने जिंदाबाद......
ReplyDeleteभाई हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया
Deleteजब भी तोड़ा, कुछ ना कुछ साबुत रक्खा
ReplyDeleteमेरे रब का मुझ पर यह एहसान रहा....आह्ह! कितनी खूबसूरती से लिख जाते हैं आप! आपकी हर ग़ज़ल का इंतज़ार रहता है. अब 'ग़ज़ल-संग्रह' का भी है. :)
हौसला अफज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया
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