हज़ारों दर्द मेरे ढल गये अश’आर में आकर
ग़ज़ल ख़ुश हूँ बहुत ही मैं तेरे दरबार में आकर
भटकती जा रही थी ज़िंदगी अब तक अँधेरे में
मुनव्वर हो गयी राहें तुम्हारे प्यार में आकर
मुनव्वर हो गयी राहें तुम्हारे प्यार में आकर
हवस, दादागिरी, हत्या, डकैती, रेप, ग़द्दारी
डराते हैं हमेशा ही मुझे अखबार में आकर
डराते हैं हमेशा ही मुझे अखबार में आकर
हमें भेजा ख़ुदा ने है यहाँ इक ख़ास मक़सद से
बताओ क्या किया तुमने भला संसार में आकर
बताओ क्या किया तुमने भला संसार में आकर
नयी दुल्हन को सब मिलकर बराबर प्यार से सींचो
पनपते देर लगती है नए घर-बार में आकर
पनपते देर लगती है नए घर-बार में आकर
मुसलसल लड़ रही है नाव खुलकर आज लहरों से
हुई है आजमाइश जोश की मँझधार में आकर
हुई है आजमाइश जोश की मँझधार में आकर
इसे तो जब समंदर की हदें भी कम पड़े अनमोल
रहेगी किस तरह मछली तुम्हारे जार में आकर
रहेगी किस तरह मछली तुम्हारे जार में आकर
- के.पी. अनमोल
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