कभी आँगन में ग़ुरबत बोलती है
कभी सर चढके शोहरत बोलती है
अगरचे छाँव है तो धूप भी है
कई रंगों में क़ुदरत बोलती है
कई रंगों में क़ुदरत बोलती है
कोई अरमां अधूरा है तेरा क्या?
तेरे लहज़े में हसरत बोलती है
तेरे लहज़े में हसरत बोलती है
हर इक झगड़े का हल मुझ में है ढूंढो
ज़माने से मुहब्बत बोलती है
ज़माने से मुहब्बत बोलती है
क़लम के रास्ते बदलाव लिक्खूं
लहू में अब बग़ावत बोलती है
लहू में अब बग़ावत बोलती है
कहीं पे रेहन रख आऊं मैं ज़ेवर
ज़ुबां चुप है, ज़रूरत बोलती है
ज़ुबां चुप है, ज़रूरत बोलती है
घुटन इस शहर में बढ़ने लगी क्या
मेरे अंदर से हिज़रत बोलती है
मेरे अंदर से हिज़रत बोलती है
कभी बैठो यहाँ और ख़ूब चहको
परिंदों से मेरी छत बोलती है
परिंदों से मेरी छत बोलती है
चलो अनमोल को मिलकर पुकारें
जिगर से आज शिद्दत बोलती है
जिगर से आज शिद्दत बोलती है
- के. पी. अनमोल
16 जुलाई, 2016
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