बात इतनी सोचना तुम हड़बड़ी को छोड़कर
चाँद पाकर क्या करोगे आदमी को छोड़कर
हाथ में उनके फ़कत तारीकियाँ ही रह गयीं
तुमसे पहले जो गये थे रोशनी को छोड़कर
ख़ाक पे आये तो आके ख़ाक में ही मिल गये
वो सफ़ीने जो कि आये थे नदी को छोड़कर
साथ देना चाहते हो साथ रहकर तो सुनो!
सब गवारा है मुझे धोखाधड़ी को छोड़कर
खेल, मस्ती, दोस्त, बचपन अब भी हैं दिल में बसे
दिन मगर चलते बने हैं इक कमी को छोड़कर
शाम गुज़री झील की गोदी में सूरज डाल के
यूँ लगा दादी चली है पोटली को छोड़कर
इस तरह अनमोल मुझमें हो गयी शामिल ग़ज़ल
जी रहा हूँ मैं उसे ही अब ख़ुदी को छोड़कर
- के. पी. अनमोल
चाँद पाकर क्या करोगे आदमी को छोड़कर
हाथ में उनके फ़कत तारीकियाँ ही रह गयीं
तुमसे पहले जो गये थे रोशनी को छोड़कर
ख़ाक पे आये तो आके ख़ाक में ही मिल गये
वो सफ़ीने जो कि आये थे नदी को छोड़कर
साथ देना चाहते हो साथ रहकर तो सुनो!
सब गवारा है मुझे धोखाधड़ी को छोड़कर
खेल, मस्ती, दोस्त, बचपन अब भी हैं दिल में बसे
दिन मगर चलते बने हैं इक कमी को छोड़कर
शाम गुज़री झील की गोदी में सूरज डाल के
यूँ लगा दादी चली है पोटली को छोड़कर
इस तरह अनमोल मुझमें हो गयी शामिल ग़ज़ल
जी रहा हूँ मैं उसे ही अब ख़ुदी को छोड़कर
- के. पी. अनमोल
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