के. पी. अनमोल एक ऐसे विरल शायर हैं, जिनके पास शेर कहने के लिए समुचित संवेदना और समकालीन जीवन के अनेक ज्वलंत विषय हैं। इनकी ग़ज़लों से गुज़रने के बाद मैं इन्हें मनोवैज्ञानिक पहलुओं का चितेरा शायर कह सकता हूँ। उनके पास अत्यंत सूक्ष्म निरीक्षण दृष्टि है, जिसे अपनी संवेदना में पिरो कर अक्सर वे ऐसी अद्भुत बातें कह जाते हैं, जो देर तक सोचने के लिए मजबूर करती हैं।
ज़हीर क़ुरैशी
वरिष्ठ हिन्दी ग़ज़लकार
के० पी० अनमोल नए समय के यथार्थ में ज़रूरी हस्तक्षेप पैदा करते हैं। यथार्थ की आँखों में आँखें गड़ाकर देखना और उसे ग़ज़ल के ज़रिए व्यक्त करना- जिस तज़ुर्बे और हौसले की माँग करता है, वो उनके पास है। उनके पास आधुनिक बोध है, जिससे वो अनुभूत किये गए समय के विसंगत को नए लबो-लहजे में व्यक्त करते हैं।
ज्ञानप्रकाश विवेक
वरिष्ठ हिन्दी कथाकार, ग़ज़लकार एवं आलोचक
एकदम सबसे सटीक मुहावरे में कहें तो अनमोल ग़ज़लगोई को अपनी अभिव्यक्ति-सम्प्रेषण का माध्यम बनाने वाले उन चन्द विरले शाइरों में से एक हैं, जिनके हाथों में ग़ज़ल मानवता की पुनर्प्रतिष्ठा का माध्यम बन चुकी है।
राकेश कुमार
पुस्तक- कुछ निशान काग़ज़ पर
विधा- ग़ज़ल
प्रकाशन- किताबगंज प्रकाशन, गंगापुरसिटी (राजस्थान)
संस्करण- प्रथम, 2019
अमेज़न पर उपलब्ध है-
https://www.amazon.in/KUCHH-NISHAN-KAGHAZ-PAR-ANMOL/dp/B07QCZ39DM/ref=sr_1_2?qid=1669749230&refinements=p_27%3AK.P.ANMOL&s=books&sr=1-2
No comments:
Post a Comment