ग़ज़ल-
सफ़ीना हर दफ़ा कोई किनारा ढूँढ लेता है
न हो माकूल मौसम फिर भी धारा ढूँढ लेता है
न हो माकूल मौसम फिर भी धारा ढूँढ लेता है
हवाओं का कि लहरों का या फिर बस एक तिनके का
जिसे हो पार होना, वो सहारा ढूँढ लेता है
जिसे हो पार होना, वो सहारा ढूँढ लेता है
बहुत मासूम है दिल गर बिछड़ जाये कोई अपना
फ़लक पर नाम का उसके सितारा ढूँढ लेता है
फ़लक पर नाम का उसके सितारा ढूँढ लेता है
समंदर जज़्ब सीने में किये, यादों के जंगल में
मेरा मन क्यूँ गुजिश्ता वक़्त सारा ढूँढ लेता है
मेरा मन क्यूँ गुजिश्ता वक़्त सारा ढूँढ लेता है
तड़पता है, मचलता है सहारा जब नहीं मिलता
मेरा ग़म मेरे सीने में गुज़ारा ढूँढ लेता है
मेरा ग़म मेरे सीने में गुज़ारा ढूँढ लेता है
मरासिम हैं तेरे अनमोल से क्या, ये नहीं मालूम
मगर जब दर्द हो, कंधा तुम्हारा ढूँढ लेता है
मगर जब दर्द हो, कंधा तुम्हारा ढूँढ लेता है
- के.पी. अनमोल
सफ़ीना= बेड़ा, माकूल= उचित, गुजिश्ता= बीताहुआ, मरासिम= संबंध
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
ReplyDeleteआपकी लेखनी कमाल की है
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteबहोत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है.खूब लिखो,भाई!
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया :-)
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