Wednesday, 23 March 2016

ग़ज़ल- सफ़ीना हर दफ़ा












ग़ज़ल-

सफ़ीना हर दफ़ा कोई किनारा ढूँढ लेता है
न हो माकूल मौसम फिर भी धारा ढूँढ लेता है

हवाओं का कि लहरों का या फिर बस एक तिनके का
जिसे हो पार होना, वो सहारा ढूँढ लेता है

बहुत मासूम है दिल गर बिछड़ जाये कोई अपना
फ़लक पर नाम का उसके सितारा ढूँढ लेता है

समंदर जज़्ब सीने में किये, यादों के जंगल में
मेरा मन क्यूँ गुजिश्ता वक़्त सारा ढूँढ लेता है

तड़पता है, मचलता है सहारा जब नहीं मिलता
मेरा ग़म मेरे सीने में गुज़ारा ढूँढ लेता है

मरासिम हैं तेरे अनमोल से क्या, ये नहीं मालूम
मगर जब दर्द हो, कंधा तुम्हारा ढूँढ लेता है

- के.पी. अनमोल

सफ़ीना= बेड़ा, माकूल= उचित, गुजिश्ता= बीताहुआ, मरासिम= संबंध

6 comments:

  1. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
    आपकी लेखनी कमाल की है

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  2. बहोत सुन्दर

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  3. ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है.खूब लिखो,भाई!

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