Saturday 17 December 2022

101 महिला ग़ज़लकार


 

101 महिला ग़ज़लकार
संपादक- के० पी० अनमोल
प्रकाशक- किताबगंज प्रकाशन, गंगापुरसिटी (राजस्थान)
ISBN: 978-93-88517-12-6
संस्करण- प्रथम, दिसम्बर 2018
मूल्य- 350 रुपये


यह संकलन किसी प्रकार का दावा नहीं करता। महिला ग़ज़ल पर इससे पहले भी काम हुआ है और हो रहा है। हमारा उद्देश्य सिर्फ इस विषय पर ध्यान दिलाना रहा है तथा इस तरह के महत्त्वपूर्ण कार्य में अपनी तरफ से सहयोग करना भर रहा है, बस। ऐसे समय में जहाँ सदियों से चली आ रही रूढियों को समाज धीरे-धीरे तोड़ रहा है, थोड़ा खुलापन मिल रहा है और अपनी बात रखने के लिए प्लेटफॉर्म्स बहुत आसानी से उपलब्ध हैं, तब महिला दृष्टिकोण से देखे गये परिदृश्य पर अभिव्यक्ति आनी ही चाहिए। तभी इस माहौल की सार्थकता सिद्ध होगी।

- के० पी० अनमोल (संपादकीय से)



किताबगंज प्रकाशन से प्रकाशित संपादक के० पी० अनमोल की 'एक सौ एक महिला ग़ज़लकार' ग़ज़लों की एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। इतनी बड़ी संख्या में एक स्थान पर इन महिला ग़ज़लकारों का आना अपने आप में महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जब हम पूरे हिंदी साहित्य के इतिहास लेखकों पर दृष्टि डालते हैं तो महिला रचनाकारों की परंपरा उपेक्षित दिखाई देती है फिर ग़ज़ल विधा पर पुस्तक लिखना, ग़ज़ल विधा पर महिला रचनाकारों को इतनी बड़ी संख्या में एक साथ लेकर आना एक साहस ही है। ऐसे समय में जब महिला लेखन पर अब लोगों का ध्यान केंद्रित हो आया है तो ग़ज़ल विधा पर महिला लेखन की चर्चा अपने आप में सराहनीय कार्य है। पुस्तक में सम्मिलित ग़ज़लकारों के क्षेत्र पर जब मेरा ध्यान गया तो मैंने गौर किया कि इसकी पहुँच ज़्यादा से ज़्यादा प्रदेशों तक गयी है। कुछ प्रदेश छूट गए हैं पर इतना व्यापक फ़लक़ प्राप्त करना भी आसान नहीं रहा होगा। उत्तरप्रदेश, पंजाब, बिहार, नई दिल्ली, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, बेंगलुरु, महाराष्ट्र, हरियाणा, यूनाइटेड किंगडम इत्यादि स्थानों से महिला रचनाकारों की प्रमुख रचनाओं का यह संग्रह बड़ा ही अनुपम व अद्भुत है।

- डॉ० शुभा श्रीवास्तव



एक महिला जब अपनी भावनाओं को शब्द देती है तो वह हृदय के काफ़ी क़रीब होती हैं क्योंकि स्त्री सुलभ संवेदना में मातृत्व और वात्सल्य का व्यापक पुट होता है, जिसमें सारी सृष्टि का सार छुपा है। इसलिए दो मिसरे में मुहब्बत की दास्तान कहते-कहते ग़ज़ल कब ज़िन्दगी की खुरदरी ज़मीन पर उतर गयी, पता ही नहीं चला। पुरुषों के समानांतर जब महिला ग़ज़लकारों की ग़ज़लें भी पढ़ी और गायी जाने लगीं तब अनेक सम्पादकों ने उन पर काम करना शुरू किया। बेहतरीन महिला ग़ज़लकारों से दुनिया को वाक़िफ़ कराने की ज़िम्मेवारी जब मेरे अज़ीज़ मित्र व बहुविध सम्पन्न के० पी० अनमोल ने ली तो मुझे यक़ीन करना पड़ा कि अब वक़्त आ गया है कि स्त्रियाँ भी पढ़ी जाने योग्य हो गयी हैं। वे अपने इल्म और हुनर की पहचान बन गयी हैं।

- डॉ० कविता विकास


यह संकलन अमेज़न पर उपलब्ध है-
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