Saturday 23 April 2016

ग़ज़ल- मेरे सपने को तुम धोखा कहोगे

मेरे सपने को तुम धोखा कहोगे
अगर सच हो गया तो क्या कहोगे?

खड़ी की हैं हमीं ने ये दीवारें
कहो, अब भी इन्हें रस्ता कहोगे?

अदा मैंने किया है हक़ समझकर
न जाने तुम इसे क्या क्या कहोगे!

मैं अपनी रूह तुमको सौंप दूंगा
किसी दिन तो मुझे अपना कहोगे

मेरे संग बैठने की शर्त है इक
मैं जैसा हूँ, मुझे वैसा कहोगे!

फ़सादों की यहाँ बस एक जड़ है
वही शय जिसको तुम पैसा कहोगे

तुम्हें अनमोल कह दे तीन आखर
पलटकर तुम उसे फिर क्या कहोगे?

- के.पी. अनमोल

No comments:

Post a Comment