Friday 8 April 2016

ग़ज़ल- सच कहा तो

सच कहा तो झूठ को धक्का लगा
सच बताना! आपको कैसा लगा?

टूटकर जब गिर पड़े सब घोंसले
तब हवाओं को बड़ा सदमा लगा

है अलग बेटी का अपना इक वजूद
पर मुझे तो तेरा इक हिस्सा लगा

इक दफ़ा मुड़कर के देखेगी मुझे
झूठ था, बे-इंतहा सच्चा लगा

शाम, तनहाई, तुम्हारी याद, मैं
ख़ुशबुओं का घर मेरे मजमा लगा

ढह गयी दीवार इतना बोलकर
बाँटना घर को किसे अच्छा लगा

ये बता अनमोल इस बाज़ार में
मोल मेरी ज़ात का कितना लगा?

- के. पी. अनमोल

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