Friday 28 April 2017

ग़ज़ल- आईना हैरान रहा

कितने दिनों तक आईना हैरान रहा
अब तक कैसे छिपकर यह इंसान रहा

जब तक कुछ अच्छा करने की नीयत थी
दिल पर मेरे हावी इक शैतान रहा

फ़ाक़ा करते देख धरा के बेटे को
भीतर-भीतर घुटता इक खलिहान रहा

जब भी तोड़ा, कुछ-कुछ रक्खा साबुत भी
मेरे रब का मुझ पर यह एहसान रहा

शंकर पर जब दु:ख का परबत टूटा तो
साया बनकर साथ खड़ा रहमान रहा

सबने मिलकर सींचा है इस धरती को
ऐसे ही तो ज़िन्दा हिंदुस्तान रहा

तुझमें शामिल होकर पहुँचा हूँ ख़ुद तक
रस्ता यह अनमोल कहाँ आसान रहा

- के. पी. अनमोल

10 comments:

  1. बेहतरीन ग़ज़ल है अनमोल साहब, वैसे तो हमेशा से ही आपकी ग़ज़लों का कायल रहा हूँ,सबने मिलकर सींचा है इस धरती को
    ऐसे थोड़े ज़िंदा हिंदुस्तान रहा...... यह शे'र आज के हालात को देखते हुए बेहतरीन हुआ है

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप जैसा उम्दा ग़ज़लकार के अगर ऐसे शब्द हों, तो दिन बन जाने वाली बात होती है :-)
      बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए शकूर साहब

      Delete
  2. वाआआह सर
    बहुत प्यारी ग़ज़ल
    ग्रेट
    🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत शुक्रिया भाई....स्वागत

      Delete
  3. शंकर पे जब दु:ख का परबत टूटा तो
    साया बनकर साथ खड़ा रहमान रहा

    वाह क्या बात है अनमोल जी,,,,,लूट लिया आपने,,,बहुत ही उम्दा ग़ज़ल,,,आनंद आ गया पढ़कर....बधाई...������

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत शुक्रिया मनोज जी

      Delete
  4. कोई इतनी सादगी से ग़ज़ल कह दे तो बड़ा ताज्जुब होता है ......बहुत ही शानदार मतले से शुरुआत करते हुए इतने बढ़िया बढ़िया शेर कहें हैं वाकई में लाजवाब है.......सबने मिलकर सींचा है इस धरती को,ऐसे थोड़े ज़िंदा हिंदुस्तान रहा....क्या कहने जिंदाबाद......

    ReplyDelete
    Replies
    1. भाई हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया

      Delete
  5. जब भी तोड़ा, कुछ ना कुछ साबुत रक्खा
    मेरे रब का मुझ पर यह एहसान रहा....आह्ह! कितनी खूबसूरती से लिख जाते हैं आप! आपकी हर ग़ज़ल का इंतज़ार रहता है. अब 'ग़ज़ल-संग्रह' का भी है. :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. हौसला अफज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया

      Delete