कितने दिनों तक आईना हैरान रहा
अब तक कैसे छिपकर यह इंसान रहा
जब तक कुछ अच्छा करने की नीयत थी
दिल पर मेरे हावी इक शैतान रहा
फ़ाक़ा करते देख धरा के बेटे को
भीतर-भीतर घुटता इक खलिहान रहा
जब भी तोड़ा, कुछ-कुछ रक्खा साबुत भी
मेरे रब का मुझ पर यह एहसान रहा
शंकर पर जब दु:ख का परबत टूटा तो
साया बनकर साथ खड़ा रहमान रहा
सबने मिलकर सींचा है इस धरती को
ऐसे ही तो ज़िन्दा हिंदुस्तान रहा
तुझमें शामिल होकर पहुँचा हूँ ख़ुद तक
रस्ता यह अनमोल कहाँ आसान रहा
- के. पी. अनमोल
अब तक कैसे छिपकर यह इंसान रहा
जब तक कुछ अच्छा करने की नीयत थी
दिल पर मेरे हावी इक शैतान रहा
फ़ाक़ा करते देख धरा के बेटे को
भीतर-भीतर घुटता इक खलिहान रहा
जब भी तोड़ा, कुछ-कुछ रक्खा साबुत भी
मेरे रब का मुझ पर यह एहसान रहा
शंकर पर जब दु:ख का परबत टूटा तो
साया बनकर साथ खड़ा रहमान रहा
सबने मिलकर सींचा है इस धरती को
ऐसे ही तो ज़िन्दा हिंदुस्तान रहा
तुझमें शामिल होकर पहुँचा हूँ ख़ुद तक
रस्ता यह अनमोल कहाँ आसान रहा
- के. पी. अनमोल